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ट्रांसिस्टर्स की संरचना

नमस्कार  _/\_ आज की पोस्ट में हम आपको बता रहे है की ट्रांसिस्टर कैसे बनाये जाते है। कितनी विधियों के द्वारा ट्रांसिस्टर बनाये जाते है  आज की पोस्ट आप सब के लिए खास है। पढ़े यह पोस्ट और जाने ट्रांसिस्टर्स की संरचना की विधि। 

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ट्रांसिस्टर्स की संरचना

(Construction of Transistors)

ट्रांसिस्टर्स बनाने की प्रमुख विधियाँ निम्न है।
1-संगम विधि (Junction Method)
2-प्वाइन्ट कॉन्टैक्ट विधि (Point Contact Method)
3-डिफ्यूज्ड संगम विधि (Diffused Junction Method)
4-सिलिकॉन प्लेनर ट्रांसिस्टर (Silicon Planer Transistor)

1- संगम विधि (Junction Method)- इस विधि में P-N-P प्रकार का ट्रांसिस्टर बनाने के लिए N- प्रकार के पदार्थ के छोटे टुकड़े पर दो ओर से 500°C – 600°C तापमान पर इन्डियम की अल्प मात्राएँ समावेषित कर दी जाती है। इस प्रकार N- प्रकार के पदार्थ के टुकड़े में दोनों ओर दो Pक्षेत्र तैयार हो जाता है। छोटा P-क्षेत्र एमीटर का और बड़ा P-क्षेत्र कलैक्टर का कार्य करता है। बीच का बचा हुआ क्षेत्र N- प्रकार का रहता है जो बेस का कार्य करता है। तीनो प्रकार के क्षेत्रों से एकएक संयोजी तार (Connecting lead) जोड़ दिया जाता है,

संगम विधि
इसी प्रकार N-P-N ट्रांसिस्टर बनाने के लिए P-प्रकार के पदार्थ के टुकड़े पर दो ओर से 500°C – 600°C तापमान पर आर्सेनिक की अल्प मात्राएँ समावेषित की जाती है और ट्रांसिस्टर की शेष सरंचना, P-N-P ट्रांसिस्टर के समान ही होता है। इस प्रकार के ट्रांसिस्टर, एलॉय, जंक्शन ट्रांसिस्टर (Alloy Junction Transistor) भी कहलाते है।
2- प्वाइन्ट कॉन्टैक्ट विधि (Point Contact Method)- इस विधि में P-N-P प्रकार का ट्रांसिस्टर बनाने के लिए N-प्रकार के पदार्थ के टुकड़े में 500°C – 600°C तापमान पर इन्डियम युक्त स्टील की दो पतली छड़े इस प्रकार समावेषित की जाती है कि वे आपस में न छुएँ और उनके बीच एक पतला N-क्षेत्र बचा रहे।एक छड़ एमीटर का और दूसरी कलैक्टर का कार्य करती है और उनके बीच का पतला N-क्षेत्र बेस का कार्य करता है।
ट्रांसिस्टर्स की संरचना
प्वाइन्ट कॉन्टैक्ट विधि
बेस से एक संयोजी तार जोड़ दिया जाता है और इस पूरे संयोजन (Assembly) को कठोर प्लास्टिक या अन्य उपयुक्त पदार्थ में बन्द कर दिया जाता है।
N-P-N ट्रांसिस्टर बनाने के लिए P प्रकार के पदार्थ के टुकड़े में आर्सेनिक युक्त स्टील छड़े समावेषित की जाती है और ट्रांसिस्टर की शेष संरचना P-N-P ट्रांसिस्टर के समान होती है

विशेषताएँ

1- इनके करंट गेन एल्फा का मान इकाई से अधिक होता है जबकि संगम ट्रांसिस्टर्स का करंट गेन इकाई से कम होता है।
   2- ये 100MHz और इससे अधिक फ्रीक़्वेंसीज पर भी सुगमता के कार्य करने में सक्षम है।
   3- इनकी करंट वहन क्षमता अधिक होती है।

 

इन्हे भी देखे।

3- डिफ्यूज्ड संगम विधि (Diffused Junction Method)- इस प्रकार के ट्रांसिस्टर, एपीटैक्सियल ट्रांसिस्टर (Epitaxial Transistor) या होमोटैक्सियल ट्रांसिस्टर (Homotaxial Transistor) के नाम से भी जाने जाते है। इनकी संरचना में फोटोलिथोग्रफिक तथा मास्किग (Photolithographic and Maskig) तकनीक प्रयोग की जाती है। P या N प्रकार के पदार्थ में अम्ल की क्रिया से छोटेछोटे दो गड्ढ़े बनाये जाते है और उनमें विपरीत प्रकार का क्षेत्र बनाने वाला पदार्थ उष्मीय क्रिया से भर दिया जाता है।
इस प्रकार से बनाया गया ट्रांसिस्टर उपयुक्त ऊष्मा विकरिक (Heat Sink) के साथ मिलकर, सैकड़ो वॉट वैधुतिक शक्ति प्रदान कर सकता है और दस या इससे अधिक एम्पीयर करंट वहन करता है। पावर ट्रांसिस्टर्स जैसे AD 149, BU 205 आदि इस विधि से बनाये जाते है। ट्रांसिस्टर निर्माण की यह आधुनिक तकनीक है इसका प्रयोग एन्टीग्रेटिड सर्किट्स (Integrated circuits) के चिप्स बनाने में भी किया जाता है।
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4- सिलिकॉन प्लेनर ट्रांसिस्टर्स की संरचना (Silicon Planer Transistor)- इस प्रकार के ट्रांसिस्टर में कलैक्टर, बेस तथा एमीटर की संरचना इस प्रकार की जाती की सिलिकॉन प्लेट की ऊपरी सतह समतल रहती है इसीलिए इसे प्लेनर ट्रांसिस्टर के नाम से जाना जाता है,

ट्रांसिस्टर्स की संरचना

सिलिकॉन प्लेनर ट्रांसिस्टर

इसमे N- प्रकार के सिलिकॉन ब्लॉक में हीटट्रीटमेंट द्वारा P- प्रकार का बेस एवं N-प्रकार का बनाऐ जाते है। बेस तथा एमीटर से एल्युमीनियम की फिलिंग से तार जबकि कलैक्टर और धात्विक खोल के बीच सोने की फिलिंग की जाती है।इस प्रकार धात्विक खोल (Metal Case) कलैक्टर का कार्य करता है और साथ ही ऊष्मा विकिरक (Heat radiator) भी होता है।

सिलिकॉन प्लेनर ट्रांसिस्टर का गुण हैअधिक वोल्टेज पर कार्य करने की क्षमता और अधिक पावर आउटपुट प्रदान करना।

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