ट्रांजिस्टर बायसिंग (Transistor Biasing) किसी ट्रांजिस्टर के प्रचालन के लिए उसके क्लैक्टर तथा बेस को ऑपरेटिंग D.C. बायस प्रदान करना आवश्यक होता है। Transistor Biasing में प्रारम्भिक प्रकार के सर्किट में इस कार्य के लिए दो अलग बैटरी प्रयोग की जाती थी जो की अत्यन्त असुविधाजनक थी। अतः कलैक्टर तथा बेस को एक ही D.C. स्रोत से बायस प्रदान करने के लिए कई प्रकार के circuits डिजाइन किये गये जो Transistor Biasing circuit कहलाते है इस कार्य के लिए निम्न चार प्रकार के circuits प्रयोग किये जाते है।
1. Transistor Biasing के लिए Base Resistor Biasing method :- इस विधि में D.C. स्रोत से एक उच्च मान KΩ का प्रतिरोधक RB संयोजित कर बेस को बायस प्रदान की जाती है। क्लैक्टर सर्किट में भी कम मान का प्रतिरोधक RL प्रयोग किया जाता है जो वोल्टेज ड्रॉपिंग तथा लोड Resistor का कार्य करता है। इस सर्किट में एमीटर को अर्थ कर दिया जाता है।
लाभ :-
हानियाँ :-
2. Transistor Biasing के लिए Feedback Resistor Biasing Method :- इस विधि में बेस बायसिंग प्रतिरोधक RB का एक सिरा सीधे D.C. सप्लाई से जोड़ दिया जाता है। इसमें प्रतिरोधक RB का मान कम रखा जाता है।
लाभ :-
हानियाँ :-
3. Transistor Biasing के लिए Emitter Resistor Biasing Method :- इस विधि में बेस बायसिंग प्रतिरोधक RB के अतिरिक्त एक प्रतिरोधक RE एमीटर अर्थ के बीच संयोजित किया जाता है। यह सर्किट emitter feedback biasing circuit भी कहलाता है।
लाभ :-
हानियाँ :-
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4. वोल्टेज डिवाडर बायसिंग विधि ( Voltage Divider Biasing Method ) :- यह सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली बायसिंग विधि है। इस विधि में बेस बायस का मान अन्य विधियों की तुलना में स्थिर रहता है इसमें दो प्रतिरोधक R1 तथा R2 positive तथा negative सप्लाई के एक्रॉस श्रेणी क्रम में जोड़े जाते है और उनके जोड़ से बेस को बायस प्रदान की जाती है। प्रतिरोधकों R1 तथा R2 से बने वोल्टेज डिवाडर में प्रतिरोधक R2 के एक्रॉस ड्रॉप होने वाला वोल्टेज ट्रांजिस्टर के लिए फॉरवर्ड बेस बायस तैयार करता है।
इस सर्किट में बायस स्थिरीकरण प्रक्रिया निम्न प्रकार है :- यदि सर्किट का तापमान बढ़ता है तो कलैक्टर करंट IC भी बढ़ जाती है। जिसके कारण प्रतिरोधक RE के एक्रॉस वोल्टेज ड्रॉप भी बढ़ेगा। परन्तु प्रतिरोधक R2 के एक्रॉस ड्रॉप होने वाला वोल्टेज क्लैक्टर में होने वाली वृद्धि IC से अप्रभावित रहता है इसीलिए VBE का मान घट जायेगा ( क्योकि R2 = VE + VBE और इसमें से VE का मान घट गया है ) बेस बायस घटने से कलैक्टर करंट IC घट कर अपने मूल मान पर पहुँच जाएगी।
लाभ :-
हानियाँ :- Circuit बड़ा हो जाता है और अधिक components लगाने पड़ते है।
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